अमेरिका का ट्रंप प्रशासन जल्द ही एक नया कानून लागू करने की तैयारी में है, जिसके तहत रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर कड़े प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पहल का समर्थन किया है। रविवार को मीडिया से बातचीत में राष्ट्रपति ट्रंप ने बताया कि उनकी पार्टी एक विधेयक लाने जा रही है, जो रूस से व्यापार करना किसी भी देश के लिए अत्यंत कठिन बना देगा।
ट्रंप ने कहा कि रूस के व्यापारिक साझेदार देश यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषित करने के लिए जिम्मेदार हैं, विशेष रूप से वे देश जो रूस से कच्चा तेल और गैस खरीदते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि रिपब्लिकन पार्टी ऐसा विधेयक लाएगी जिसमें रूस से व्यापार करने वाले देशों पर काफी कड़े प्रतिबंधों का प्रावधान होगा। यह कदम रूस पर उसके सैन्य अभियानों के लिए आर्थिक दबाव बनाने की अमेरिका की रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है।
इस संभावित कानून से भारत और चीन जैसे देशों के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि ये दोनों देश रूस के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार करते हैं। अमेरिका पहले ही भारत पर रूस से तेल खरीदने के लिए अतिरिक्त टैरिफ लगा चुका है। अमेरिका का मानना है कि रूस के यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषित करने में भारत और चीन का प्रमुख योगदान है। इस नए कानून के तहत भारत और चीन के अलावा ईरान की भी परेशानी बढ़ सकती है, जो रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को मजबूत कर रहा है।
एक तरफ अमेरिका रूस से व्यापार करने वाले देशों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की तैयारी कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है। दोनों देशों ने साल 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर 100 अरब डॉलर करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। इसके अतिरिक्त, भारत और रूस के बीच इंडिया-यूरेशियन इकॉनोमिक यूनियन मुक्त व्यापार समझौता होने की संभावना भी है, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को और गहरा करेगा।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि अमेरिका का यह विधेयक पारित हो जाता है, तो ट्रंप उन देशों से आयात पर 500 प्रतिशत तक का भारी शुल्क लगा सकेंगे जो रूस से कच्चा तेल या गैस खरीदते हैं। यह एक अभूतपूर्व कदम होगा जो इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। ऐसे शुल्क व्यापार को अत्यंत महंगा बना देंगे और रूस से ऊर्जा खरीदने की व्यवहार्यता को काफी कम कर देंगे।
भारत के लिए यह स्थिति विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है क्योंकि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस से कच्चे तेल का आयात करता है। अमेरिका के दबाव और संभावित प्रतिबंधों के कारण भारत को अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने या रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। यह देखना बाकी है कि भारत सरकार इस अमेरिकी पहल पर कैसे प्रतिक्रिया देती है और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए क्या कदम उठाती है, जबकि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के जटिल जाल में संतुलन बनाए रखती है।
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