चंडीगढ़। मध्य-पूर्व में इजरायल और ईरान के बीच भड़की युद्ध की आग की तपिश सीधे पंजाब के खेतों तक महसूस की जाने लगी है। शुक्रवार सुबह इजरायल द्वारा ईरान पर किए गए हमले की खबर ने पंजाब, विशेषकर बासमती निर्यातकों के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है। ईरान, पंजाब के बासमती चावल का एक सबसे बड़ा खरीदार है, और इस सैन्य टकराव के कारण हजारों करोड़ रुपये का यह व्यापार अब अनिश्चितता के भंवर में फंस गया है।
पंजाब के बासमती निर्यातकों की चिंता जायज है, क्योंकि भारत के कुल बासमती निर्यात में पंजाब का एक बड़ा हिस्सा है और उस हिस्से का एक महत्वपूर्ण भाग ईरान को जाता है। पंजाब बासमती राइस मिलर्स एसोसिएशन के प्रधान अशोक सेठी ने बताया कि हमले की खबर के तुरंत बाद उन्होंने ईरान में अपने व्यापारिक सहयोगियों से संपर्क साधा। उन्होंने कहा, “ईरान में स्थिति बेहद अनिश्चित है। अगर यह युद्ध लंबा खिंचता है, तो कुछ भी कहना मुश्किल होगा।”
सेठी ने युद्ध के तात्कालिक प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए कहा, “युद्ध की स्थिति में सबसे पहले समुद्री मार्गों और बंदरगाहों को बंद कर दिया जाता है, जिससे जहाजों के माध्यम से माल भेजना असंभव हो जाता है। हमारे पास देश में बासमती की इतनी मांग नहीं है कि हम इस नुकसान की भरपाई कर सकें। अगर निर्यात रुका, तो आने वाले समय में बासमती की कीमतों में भारी गिरावट आ सकती है, जिसका सीधा नुकसान किसानों और मिल मालिकों, दोनों को होगा।”
आंकड़ों में समझें संकट की गंभीरता
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (अपेडा) के आंकड़े इस संकट की भयावहता को दर्शाते हैं। भारत सालाना लगभग 48,000 करोड़ रुपये के बासमती का निर्यात करता है, जिसमें अकेले पंजाब की हिस्सेदारी 40% है। इस हिस्से में से भी लगभग 25% बासमती चावल सीधे ईरान को निर्यात किया जाता है। पंजाब से मुख्य रूप से 1509, 1718, और 1121 जैसी प्रसिद्ध किस्में ईरान भेजी जाती हैं।
पुराने जख्म हुए हरे
यह पहली बार नहीं है जब मध्य-पूर्व के तनाव ने पंजाब के बासमती व्यापार को प्रभावित किया है। दो साल पहले भी दोनों देशों के बीच तनाव के दौरान व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ था। इसके अलावा, साल 2023 में भारत सरकार द्वारा लगाए गए एक प्रतिबंध ने भी निर्यातकों को भारी घाटा पहुंचाया था। सरकार ने नियम बनाया था कि केवल वही निर्यातक बासमती भेज सकते हैं, जिनके पास 1200 डॉलर प्रति टन से अधिक के ऑर्डर हों। जबकि पंजाब से ईरान को निर्यात होने वाले बासमती की औसत कीमत 900 डॉलर के आसपास रहती है, जिससे निर्यात लगभग ठप हो गया था।
किसानों और सरकारी योजनाओं पर भी मंडराया खतरा
यह संकट ऐसे समय में आया है जब पंजाब में धान की रोपाई का काम जोर-शोर से चल रहा है। राज्य सरकार पानी की खपत कम करने के लिए किसानों को सामान्य धान की जगह बासमती उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। बासमती की रोपाई जून के अंत से 15 जुलाई तक चलती है। ऐसे में अगर युद्ध लंबा चला तो मांग न होने के कारण किसानों को बासमती का उचित मूल्य नहीं मिलेगा और वे इसे उगाने से कतराएंगे। यह स्थिति राज्य सरकार के फसल विविधीकरण के प्रयासों को भी एक बड़ा झटका दे सकती है।
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