दल बदल की सियासी पिच पर हरदा और बहुगुणा आमने सामने 

देहरादून। विधानसभा चुनाव पास आते ही भाजपा और कांग्रेस में दल बदल को लेकर दांव पेच शुरु हो गए हैं। अभी तक कांग्रेस के पाले में दो, तो भाजपा के पाले में तीन विधायक आ चुके हैं, लेकिन बड़ा झटका भाजपा को लगा है। उनके कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने पार्टी छोड़ी है। खींचतान की इस सियासी जंग में अब भाजपा ने पूर्व सीएम विजय बहुगुणा को उतार दिया है। बहुगुणा अपने खेमे के असंतुष्ट विधायकों को मनाने के लिए देहरादून में डेरा डाले हुए हैं। वहीं कांग्रेस की ओर से भाजपा में सेंधमारी की कमान पूरी तरह से पूर्व सीएम हरीश रावत के पास है। 2016 में बहुगुणा और हरदा के बीच हुई दल बदल की सियासी जंग का यह पार्ट टू है।
उत्तराखंड की सियासी पिच पर चुनाव पास आते ही दल बदल कर विधायकों की हार्स ट्रेडिंग नई बात नहीं है। 2016 में विजय बहुगुणा ने एक साथ कांग्रेस के नौ विधायक तोड़े थे। उसके बाद तीन विधायक और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए थे। उत्तराखंड के इतिहास का यह सबसे बड़ा दल बदल रहा है। इसी के चलते कांग्रेस को 2017 के चुनाव में भारी नुकसान हुआ और सत्ता भाजपा के पास आ गई। प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा पर यह आरोप लगते रहे कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायकों की अनदेखी हो रही है। अब एक बार फिर चुनाव आ गए हैं और दल बदल की नई पटकथा लिखी जा रही है। पहली खेप में दोनों और से बराबर का दम दिखाया गया। कांग्रेस ने भाजपा के दो विधायक अपने पाले में किये तो भाजपा ने कांग्रेस के एक विधायक सहित दो निर्दलीयों को अपने खेमे में शामिल किया। अब असल लड़ाई 2016 में भाजपा में शामिल हुए उन नौ विधायकों  को लेकर है, जिनमें से कुछ असंतोष का बिगुल बजा चुके हैं। रायपुर विधायक उमेश शर्मा को एक बार किसी तरह से सांसद अनिल बलूनी कांग्रेस में जाने से रोकने में कामयाब रहे, लेकिन काऊ अभी भी अपनी विधानसभा के पुराने भाजपाइयों से परेशान हैं। काऊ को यूं तो बहुगुणा कैंप के सभी विधायकों का साथ है, लेकिन उनके साथ खुलकर साथ खड़े हैं काबीना मंत्री हरक सिंह। हरक लगातार हरीश रावत के संपर्क में हैं। दोनों गिले शिकवे दूर करने की कोशिश भी कर रहे हैं। लेकिन भाजपा ने संकट की इस घड़ी में पांच साल से हाशिये पर चल रहे विजय बहुगुणा को उत्तराखंड की सियासी पिच पर उतारा है। अब बहुगुणा की सीधी टक्कर पुराने प्रतिद्वंदी हरीश रावत है। बहुगुणा ने देहरादून में अपना कैंप जमाकर हरक, उमेश, चैंपियन और सुबोध उनियाल से बैठक की। उन्होंने हरक और उमेश की नाराजगी को शांत करने की कोशिश की। बहुगुणा के डेरा डालने से कांग्रेस असहज है। बहुगुणा न केवल अपने कैंप को बल्कि कांग्रेस में पुराने रिश्तों के चलते वहां भी कुछ नेताओं को तोड़ने की क्षमता रखते हैं। यह बात हरीश रावत भी भली भांति जानते है। बहुगुणा के सामने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को फिर खुश करने का मौका है, जबकि हरीश के लिए यह चुनाव उनके सियासी पारी के लिए संजीवनी की तरह है। अगर हरीश रावत भाजपा में सेंधमारी करने में कामयाब होते हैं, तो उसका असर चुनावी नतीजों पर दिखेगा। लेकिन बहुगुणा ने अपने कैंप को बचा लिया तो इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। अब आने वाले दिनों में दोनों और से वार पलटवार होना तय है। बस देखना यह है कि पहला वार किसकी और से होता है और उनका पलटवार कितना जोरदार रहता है।

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