बहुत से लोग अक्षय तृतीया को केवल सोना खरीदने का दिन मानते हैं, यहाँ तक कि इसके लिए कर्ज लेने से भी नहीं हिचकिचाते. लेकिन वास्तव में, इस पवित्र दिन का गहरा आध्यात्मिक महत्व है.
शास्त्रीय संदर्भ:
भविष्य पुराण में भगवान कृष्ण ने इस दिन का महत्व बताया है:
(श्लोक)
बहुनात्र किमुक्तेन किं बहुक्षर्मालय | वैशाखस्य सीतामेकं तृतीयामाक्षयां शृणु ||
इस श्लोक का अर्थ है कि अक्षय तृतीया के दिन पवित्र स्नान, भगवान कृष्ण को धूप, दीप, फूल और विशेष रूप से चंदन अर्पित करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है.
अक्षय तृतीया का अर्थ:
(श्लोक)
स्नात्वा हुत्वा च जप्त्वा च दत्त्वा अनन्तफलं लभेत् ||
इस दिन किए गए स्नान, जप, तप, शास्त्र अध्ययन, हवन और दान जैसे पवित्र कर्म अक्षय फल प्रदान करते हैं. यह शाश्वत पुण्य प्रदान करता है और मोक्ष की ओर ले जा सकता है, इसीलिए इसे अक्षय तृतीया कहते हैं.
अक्षय तृतीया कब मनाई जाती है?
(श्लोक)
पूर्वाह्ने तु सदा कार्याः शुक्ले मनुयुगादयः | दैव्ये कर्माणि पितृये च कृष्णे चैवापराह्निकाः || वैशाखस्य तृतीयां च पूर्वविद्धां करोति वै | हव्यं देवा न गृह्न्न्ति काव्यं च पितृस्त
अक्षय तृतीया वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है, विशेषकर जब दिन के पहले तीन मुहूर्तों में रोहिणी नक्षत्र हो. यह दिन गृह प्रवेश, विवाह, नए उद्यम शुरू करने और निवेश के लिए शुभ माना जाता है.
क्या अक्षय तृतीया पर पितृ तर्पण किया जा सकता है?

धर्म सिंधु के अनुसार, अक्षय तृतीया देव पूजा के साथ-साथ पितृ तर्पण के लिए भी शुभ है. इसलिए, इस दिन पितृ तर्पण और पिंडदान करने की सलाह दी जाती है.
महाभारत और अन्य पौराणिक संदर्भ:
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महाभारत में द्रौपदी द्वारा कृष्ण से प्रार्थना और अक्षय पात्र की कथा प्रचलित है.
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इस दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था.
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कुचेला (सुदामा) ने कृष्ण को चावल अर्पित किए और उन्हें अनंत धन की प्राप्ति हुई.
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व्यास ने महाभारत की रचना शुरू की.
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गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ.
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त्रेता युग का आरंभ हुआ.
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पांडवों को अक्षय पात्र मिला.
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आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना शुरू की.
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कुबेर ने लक्ष्मी की पूजा की और अष्ट ऐश्वर्य प्राप्त किया.
अक्षय तृतीया का उत्सव और लाभ:
सोना खरीदने के बजाय अच्छे कर्मों और आध्यात्मिक अभ्यास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. कुछ अनुष्ठान इस प्रकार हैं:
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पवित्र स्नान और मंदिर दर्शन.
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मिट्टी के बर्तन में जल दान.
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जरूरतमंदों को वस्त्र दान.
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मौसमी फल, चावल, दाल, गेहूं या गुड़ का दान.
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छाछ या दही का दान.
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गायों को चारा खिलाना.
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप.