देहरादून। उत्तराखंड के जंगलों में अतिक्रमण कर एक हजार से ज्यादा मजारें व अन्य संरचनाएं बनी हैं। अब सरकार ने भी माना है। मजारों के लिए अभी सर्वे जारी है और इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी हो सकती है। धामी सरकार ने इन्हें हटाने को छह माह की मोहलत दी गई है। एक दैनिक अखबार ने इसका खुलासा किया है। लेकिन असल सवाल है कि इतनी मजारें बनती रही तो वन मंत्री और वन विभाग के अफसरों को क्यों पता नहीं चला। वहीं, विपक्ष भी बड़े पैमाने पर जंगलों में मजारें बनने पर मौन है।
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राज्य के जंगलों में एकाएक मजारों और अन्य धार्मिक संरचनाओं की बाढ़ को लेकर पिछले साल कई खुलासे हुए। सूचनाओं ने सरकार के कान खड़े कर दिए थे, लेकिन हटाने की कार्रवाई कुछ एक की हुई। तराई और भाबर क्षेत्र के जंगलों में पिछले 15-20 वर्षों में इन संरचनाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसके बाद सरकार ने जून में वन विभाग को सर्वे कराकर राज्य के जंगलों में स्थित धार्मिक स्थलों के संबंध में रिपोर्ट मांगी। तब प्रारंभिक रिपोर्ट में वन क्षेत्रों में लगभग 400 धार्मिक संरचनाओं की बात सामने आई थी। कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में लगभग 40 मजारें अस्तित्व में होने का उल्लेख रिपोर्ट में है। यद्यपि, अभी गहन सर्वे का क्रम चल रहा है।
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ऐसा कैसे संभव है कि जंगल में धार्मिक संरचनाएं बन जाएं और रखवालों को इसकी भनक तक न लगे। हैरत की बात यह कि वन विभाग की ओर से शासन को भेजी गई प्रारंभिक रिपोर्ट में यह उल्लेख नहीं है कि जंगलों में अवैध तरीके से धार्मिक स्थलों का निर्माण कब हुआ। जंगलों में अवैध रूप से बनी मजारों को हटाने की मुहिम भी पिछले लगभग छह माह से चल रही है। पूर्व में देहरादून वन प्रभाग में 17, कालसी वन प्रभाग में नौ और गढ़वाल वन प्रभाग में बनी एक मजार को ध्वस्त किया गया था। इन सभी मामलों में वन भूमि में अतिक्रमण की पुष्टि हुई थी।