नई दिल्ली: 34 साल पुराने रोड रेज केस में कांग्रेसी नेता नवजोत सिंह सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. उन्हें एक साल जेल की सजा हुई है. उन्हें एक साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है. कोर्ट ने अपने 15 मई, 2018 के एक हजार रुपये के जुर्माने की सजा को बदल दिया है.
इसी साल 25 मार्च सुप्रीम कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू की सजा बढ़ाने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा था. सभी पक्षों की दलीलें सुनने को बाद फैसला सुरक्षित रखा था. सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि सिद्धू की सजा बढ़ाई जाए या नहीं. पीड़ित परिवार की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा गया था. इससे पहले पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू की मुश्किलें बढ़ गईं थीं.
सुप्रीम कोर्ट ने साधारण चोट की बजाए गंभीर अपराध की सजा देने की याचिका पर सिद्धू को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. पीड़ित परिवार ने याचिका दाखिल कर रोड रेज केस में साधारण चोट नहीं बल्कि गंभीर अपराध के तहत सजा बढ़ाने की मांग की. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साधारण चोट का मामला बताते हुए सिर्फ ये तय करने का फैसला किया था कि क्या सिद्धू को जेल की सजा सुनाई जाए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान विशेष पीठ में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल के सामने पीड़ित परिवार यानी याचिकाकर्ता की ओर से सिद्धार्थ लूथरा ने कई पुराने मामलों में आए फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सड़क पर हुई हत्या और उसकी वजह पर कोई विवाद नहीं है.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी साफ है कि हत्या में हमले की वजह से चोट आई थी, हार्ट अटैक नहीं, लिहाजा दोषी को दी गई सजा को और बढ़ाया जाए. सिद्धू की ओर से पी चिदंबरम ने याचिकाकर्ता की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने मामले को अलग दिशा दी है. ये मामला तो आईपीसी की धारा 323 के तहत आता है. घटना 1998 की है. कोर्ट इसमें दोषी को मामूली चोट पहुंचाने के जुर्म में एक हजार रुपये जुर्माने की सजा सुना चुका है.
जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा था कि पिछले फैसले जो उद्धृत किए गए हैं उनके मुताबिक भी ये सिर्फ मामूली चोट का मामला नहीं बल्कि एक खास श्रेणी में आता है. अब आपको उन दलीलों के साथ बचाव करना है. पूरे फैसले के बजाय आपको सजा की इन्हीं दलीलों पर अपना जवाब रखना है. मौजूदा स्थिति में हम सिर्फ इसी पर सुनवाई को फोकस रखना चाहते हैं. हम पेंडोरा बॉक्स नहीं खोलना चाहते.
क्या है पूरा मामला
27 दिसम्बर 1988 को सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू की पटियाला में कार पार्किंग को लेकर गुरनाम सिंह नाम के बुजुर्ग के साथ कहासुनी हो गई. झगड़े में गुरनाम की मौत हो गई. सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया गया. पंजाब सरकार और पीड़ित परिवार की तरफ से मामला दर्ज करवाया गया. साल 1999 में सेशन कोर्ट से सिद्धू को राहत मिली और केस को खारिज कर दिया गया. कोर्ट का कहना था कि आरोपी के खिलाफ पक्के सबूत नहीं हैं और ऐसे में सिर्फ शक के आधार पर केस नहीं चलाया जा सकता, लेकिन साल 2002 में राज्य सरकार ने सिद्धू के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अपील की. 1 दिसम्बर 2006 को हाईकोर्ट बेंच ने सिद्धू और उनके दोस्त को दोषी माना.