देहरादून। कांग्रेस ने पूर्व सीएम हरीश रावत को रामनगर से उतार दिया है, लेकिन वहां कांग्रेस के दावेदार रणजीत रावत की नाराजगी बढ़ गई है। यह नाराजगी हरीश रावत पर भारी पड़ सकती है। रणजीत अगर निर्दलीय ताल ठोकते हैं, तो इससे हरदा को नुकसान तो पहुंचेगा बल्कि भाजपा के लिए सीट आसान हो जाएगी। ऐसे में हरदा अब रणजीत के मानमनौव्वल में लगे हैं। रणजीत अगर साथ लगती सीट सल्ट से प्रत्याशी बनने को सहमति दे देते हैं, तो हरदा की मुश्किलें आसान हो जाएंगी।
कांग्रेस ने रणजीत रावत को रामनगर से टिकट काटकर हरीश रावत को दे दिया। इससे रामनगर की जंग बेहद रोचक हो गई है। रणजीत ने फिलहाल के लिए बागी तेवर अख्तियार किये हुए हैं। वह निर्दलीय चुनाव लड़ने को लेकर अपने समर्थकों के साथ बैठक कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस रणजीत को सल्ट से टिकट देकर मनाने की कोशिश में है। अगर रणजीत सल्ट के लिए मान जाते हैं तो हरदा के लिए चुनौतियां कम हो जाएंगी। वहीं रणजीत चाहते हैं कि सल्ट से उनके बेटे को टिकट दिया जाए। जिसकी पैरोकारी वह सल्ट उपचुनाव में भी कर रहे थे, लेकिन हरीश रावत ने तब रणजीत की चलने नहीं दी और अपनी पसंद की प्रत्याशी को टिकट दिलवाया जो हार गई। अब हरीश ने अपना टिकट रामनगर से लेकर रणजीत के साथ अदावत और बढ़ा ली है, जिससे आने वाले दिनों में रामनगर में राजनीति गर्माने के आसार हैं।
एक समय में हरदा के सेनापति थे रणजीत
जब हरीश रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तो रणजीत उनके सेनापति थे। हरीश रावत के सबसे करीबी रहे रणजीत की उनसे खटपट 2017 में चुनाव हारने के बाद शुरू हुई। इसकी वजहें सामने खुलकर नहीं आई, लेकिन रणजीत ने पाला बदलकर प्रीतम सिंह गुट का रुख कर लिया। इससे हरीश रावत बेहद नाराज हो गए। इसी का नतीजा है कि उन्होंने रामनगर से अपना टिकट भी सुनिश्चित करवाया जबकि प्रीतम रणजीत की पैरोकारी कर रहे थे।