नई दिल्ली। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने एक ऐसा बयान देकर राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है जिसने देश की सियासत को गरमा दिया है। चव्हाण ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा करते हुए दावा किया है कि इस सैन्य अभियान के पहले ही दिन भारत पूरी तरह से हार गया था। उनके इस बयान ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू कर दिया है।
पुणे में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पृथ्वीराज चव्हाण ने ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस अभियान में जमीन पर कोई खास हलचल नहीं हुई बल्कि यह युद्ध सिर्फ हवा और मिसाइलों के जरिए लड़ा गया। उन्होंने दावा किया कि हवाई लड़ाई के दौरान भारतीय विमानों को नुकसान पहुंचा और स्थिति ऐसी बनी कि वायुसेना को अपनी उड़ानें रोकनी पड़ीं। चव्हाण ने सेना की उपयोगिता पर भी सवाल खड़े करते हुए पूछा कि क्या इतनी बड़ी सेना रखने की वाकई जरूरत है जब आज के दौर में युद्ध केवल हवा में ही लड़े जा रहे हैं।
उनके इस बयान के बाद जब विवाद बढ़ा और उनसे माफी मांगने की मांग की गई तो पृथ्वीराज चव्हाण ने माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने तल्ख लहजे में कहा कि वह माफी क्यों मांगें। उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल नामुमकिन है क्योंकि देश का संविधान उन्हें सवाल पूछने का अधिकार देता है। चव्हाण ने जोर देकर कहा कि वे अपने बयान पर पूरी तरह कायम हैं और इसे किसी भी कीमत पर वापस नहीं लेंगे।
चव्हाण के इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और इसकी घोर निंदा की है। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने हमला बोलते हुए कहा कि सेना का अपमान करना अब कांग्रेस पार्टी की आदत बन चुकी है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह बयान सिर्फ पृथ्वीराज चव्हाण का नहीं है बल्कि राहुल गांधी ने भी पहले इसी तरह के बयान दिए हैं। पूनावाला ने कहा कि चव्हाण का यह बयान राहुल गांधी की सोच को ही दर्शाता है और यही वजह है कि कांग्रेस अपने ऐसे नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं करती।
शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस पर सेना विरोधी मानसिकता रखने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस बार-बार देश के सशस्त्र बलों का सम्मान कम करने की कोशिश करती रहती है जो बेहद निंदनीय है। बीजेपी प्रवक्ता ने चव्हाण के बयान को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बताया है। इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा और सेना के मनोबल से जुड़े मुद्दों को राजनीतिक बहस के केंद्र में ला दिया है।