शिमला। हिमाचल प्रदेश में पंचायत चुनावों को लेकर राज्य सरकार और चुनाव आयोग के बीच टकराव बढ़ गया है। एक तरफ राज्य सरकार ‘डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट’ लागू होने का तर्क देते हुए चुनावों को टालने की बात कह रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य चुनाव आयोग का कहना है कि उनकी तरफ से चुनावों की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। इस मामले में अब राज्य चुनाव आयुक्त ने राजभवन जाने का फैसला किया है, जहाँ वह राज्यपाल को पूरे घटनाक्रम की विस्तृत रिपोर्ट सौंपेंगे।
चुनाव आयोग ने पंचायत चुनावों के लिए बैलेट पेपर भी छपवा लिए हैं और जिला स्तर पर उपायुक्तों (डीसी) से चुनाव सामग्री और बैलेट पेपर उठाने को कहा था। हालांकि, उपायुक्तों ने ये बैलेट पेपर नहीं उठाए हैं। उन्होंने बताया है कि उन्हें राज्य सरकार की तरफ से निर्देश मिले हैं कि जब तक आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू है, तब तक वे इंतजार करें।
चुनाव आयुक्त की बैठक में नहीं शामिल हुए अधिकारी
राज्य चुनाव आयुक्त ने पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों की तैयारियों के संबंध में अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई थी। इस बैठक में मुख्य सचिव, वित्त सचिव, राजस्व सचिव, शहरी विकास सचिव, पंचायती राज सचिव और गृह सचिव सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया गया था, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस बैठक में कोई भी अधिकारी शामिल नहीं हुआ। वहीं, जिलाधीशों की ओर से भी चुनाव से जुड़ी कुछ औपचारिकताएं पूरी नहीं की गई हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण आरक्षण रोस्टर जारी करना है, जो कि ज्यादातर जिलों में अभी तक नहीं किया गया है।
चुनाव आयोग ने पिछले साल ही शुरू कर दी थी प्रक्रिया
राज्य चुनाव आयोग ने पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पिछले साल ही शुरू कर दी थी। आयोग ने पंचायतों और शहरी निकायों के पुनर्गठन और नई पंचायतों के गठन का निर्देश दिया था। इसके अलावा, मतदाता सूची भी तैयार कर ली गई है। इस पूरी प्रक्रिया में सामान्यतः 4 से 5 महीने का समय लगता है। आयोग ने 3 करोड़ बैलेट पेपर छपवा लिए हैं और अन्य चुनाव सामग्री का भी प्रकाशन कर दिया है। वर्तमान में आयोग ने चुनावों को लेकर अपनी सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं।
पंचायतों के पुनर्गठन के 23 प्रस्ताव
पंचायतों के पुनर्गठन (री-ऑर्गेनाइज) के लिए पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास विभाग को विभिन्न जिलों से 23 प्रस्ताव मिले हैं। ये प्रस्ताव शिमला, कांगड़ा, कुल्लू और मंडी जिलों के उपायुक्तों द्वारा भेजे गए हैं। विभाग ने इन प्रस्तावों को सरकार को भेजा था। हालांकि, चुनाव आयोग अब पुनर्गठन की प्रक्रिया पर रोक लगा चुका है।
आचार संहिता का एक क्लॉज़ लागू
राज्य चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता का एक महत्वपूर्ण क्लॉज़ लागू कर दिया है। इसके तहत पंचायतों और नगर निकायों की सीमाएं ‘फ्रीज’ कर दी गई हैं, यानी उनमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। इसका मतलब है कि सरकार चाहकर भी अब पंचायतों का पुनर्गठन और पुनर्सीमांकन (डिलिमिटेशन) नहीं कर पाएगी। हालांकि, राज्य सरकार चुनाव आयोग के इस फैसले को पलटने के लिए कानूनी सलाह ले रही है। आयोग का तर्क है कि यदि अब पुनर्गठन या पुनः: सीमांकन किया जाता है, तो मतदाता सूची को नए सिरे से बनाना पड़ेगा, क्योंकि सीमाओं में बदलाव से मतदाताओं का क्षेत्र भी बदल जाएगा।
मतदाता सूची आयोग की वेबसाइट और सारथी ऐप पर
राज्य चुनाव आयोग ने मतदाताओं से अपील की है कि हालांकि अभी वोटर लिस्ट का अंतिम प्रकाशन नहीं हुआ है, फिर भी वे अपना नाम आयोग की वेबसाइट और सारथी ऐप पर देख सकते हैं। यदि उनका नाम इस सूची में नहीं है, तो वे दो रुपये का फॉर्म भरकर अपना नाम दर्ज करने के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह स्थिति हिमाचल प्रदेश में लोकतंत्र के निचले स्तर पर एक संवैधानिक संकट पैदा कर रही है।
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