नई दिल्ली। देश के 272 प्रतिष्ठित नागरिकों ने एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें विपक्ष के नेता और कांग्रेस पार्टी द्वारा भारत के चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं को कथित तौर पर बदनाम करने के प्रयासों की कड़ी निंदा की गई है. इन नागरिकों में 16 न्यायाधीश, 123 सेवानिवृत्त नौकरशाह और 133 सेवानिवृत्त सशस्त्र बल अधिकारी शामिल हैं, जो समाज के विभिन्न क्षेत्रों से आते हैं.
‘संस्थाओं पर हो रहे हैं हमले’
पत्र में गहरी चिंता व्यक्त की गई है कि भारत के लोकतंत्र पर बाहरी बल से नहीं, बल्कि उसकी मूलभूत संस्थाओं के खिलाफ बढ़ती जहरीली बयानबाजी से हमला हो रहा है. इसमें कहा गया है कि कुछ राजनेता, वास्तविक नीतिगत विकल्प पेश करने के बजाय, अपनी नाटकीय राजनीतिक रणनीति के तहत भड़काऊ लेकिन निराधार आरोपों का सहारा ले रहे हैं.
नागरिकों ने अपने पत्र में उल्लेख किया कि पहले भी भारतीय सशस्त्र बलों के पराक्रम और उपलब्धियों पर सवाल उठाए गए हैं. इसके अलावा, न्यायपालिका, संसद और उसके संवैधानिक पदाधिकारियों की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाकर उन्हें बदनाम करने का प्रयास किया गया है. अब इसी कड़ी में भारत के चुनाव आयोग की ईमानदारी और प्रतिष्ठा पर व्यवस्थित और षड्यंत्रकारी हमले किए जा रहे हैं.
खुले पत्र में कहा गया है कि ये हमले भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करते हैं. संवैधानिक संस्थाएं किसी भी लोकतंत्र की नींव होती हैं, और उनकी विश्वसनीयता को कमजोर करने के प्रयास देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता के विश्वास को eroding करते हैं.
‘विपक्ष के नेता ने चुनाव आयोग पर बार-बार हमला किया’
पत्र में विशेष रूप से लोकसभा में विपक्ष के नेता की आलोचना की गई है, जिन्होंने चुनाव आयोग पर बार-बार हमला किया है. विपक्ष के नेता ने कथित तौर पर यह दावा किया है कि उनके पास इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि चुनाव आयोग वोटों की चोरी में शामिल है. उन्होंने 100 प्रतिशत सबूत होने का दावा भी किया है, हालांकि इन दावों का कोई ठोस आधार अब तक प्रस्तुत नहीं किया गया है.
इन 272 नागरिकों का मानना है कि इस तरह के आरोप, विशेषकर ऐसे महत्वपूर्ण संवैधानिक निकाय के खिलाफ, बिना किसी पुख्ता सबूत के लगाए जाने से लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. यह न केवल चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा को धूमिल करता है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की अखंडता पर भी संदेह पैदा करता है.
पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि राजनीतिक बहस को नीतिगत मुद्दों और जनहित के वास्तविक विकल्पों पर केंद्रित होना चाहिए, न कि निराधार आरोपों और संस्थाओं को बदनाम करने पर. यह वरिष्ठ नागरिकों का समूह मानता है कि ऐसे हमलों से लोकतंत्र कमजोर होता है और समाज में अनावश्यक विभाजन पैदा होता है.
खुले पत्र का उद्देश्य समाज में इन गंभीर चिंताओं को उजागर करना और सभी राजनीतिक दलों से अपील करना है कि वे संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा और स्वतंत्रता का सम्मान करें. उनका मानना है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि सभी नागरिक और राजनीतिक नेता इन संस्थाओं की अखंडता को बनाए रखने में सहयोग करें, बजाय इसके कि उन्हें राजनीतिक लाभ के लिए निशाना बनाया जाए. इस पत्र के माध्यम से, इन नागरिकों ने देश की लोकतांत्रिक परंपराओं और संस्थाओं की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है.
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