पंजाब और चंडीगढ़ के कुल 13 भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारियों पर ऑनलाइन सट्टेबाजी नेटवर्क से जुड़े होने के गंभीर आरोप सामने आए हैं। इन अधिकारियों में पंजाब के दस और चंडीगढ़ के तीन आईपीएस अधिकारी शामिल बताए जा रहे हैं। इस सनसनीखेज मामले को लेकर चंडीगढ़ पुलिस शिकायत प्राधिकरण (पीसीए) ने अब सख्त रुख अपना लिया है। प्राधिकरण ने चंडीगढ़ की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) और आयकर विभाग से इस संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।
पीसीए के चेयरमैन न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) कुलदीप सिंह और सदस्य सेवानिवृत्त आईपीएस अमरजोत सिंह गिल की पीठ ने स्पष्ट आदेश दिए हैं कि रिपोर्ट में उन सभी अधिकारियों के नाम और उनके खिलाफ जांच के दौरान सामने आए साक्ष्य प्रस्तुत किए जाएं। इसके साथ ही, अब तक हुई कार्रवाई का पूरा ब्यौरा भी देने को कहा गया है। यह रिपोर्ट अगली सुनवाई से पहले जमा करनी होगी, जिसकी तारीख दो दिसंबर निर्धारित की गई है।
यह मामला तब प्रकाश में आया जब सितंबर 2025 में आयकर विभाग की जांच शाखा ने उत्तर भारत के सबसे बड़े ऑनलाइन सट्टेबाजी नेटवर्क का भंडाफोड़ किया था। इस कार्रवाई के तहत चंडीगढ़ में सेक्टर-33 और सेक्टर-44 में स्थित दो कोठियों में चार दिनों तक लगातार छापामारी चली थी। जांच में पता चला कि ये कोठियां ऑनलाइन सट्टेबाजी के सरगना और उसके भाई की थीं।
आयकर विभाग की टीम ने दावा किया था कि इस सट्टेबाजी नेटवर्क को कुछ पुलिस अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था। यही कारण था कि इस बड़े नेटवर्क के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पा रही थी। हालांकि, विभाग ने कभी भी उन पुलिस अधिकारियों के नाम सार्वजनिक नहीं किए थे। इस मामले में जांच की धीमी रफ्तार को लेकर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं, जिससे जनता में असंतोष बढ़ रहा था।
इसी मामले में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के वकील निखित सराफ ने पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को एक शिकायत भेजी थी। उनकी शिकायत की एक प्रति चंडीगढ़ पीसीए को भी भेजी गई। प्राधिकरण ने इस शिकायत को आधार बनाते हुए स्वत: संज्ञान लिया और मामले की जांच को आगे बढ़ाया।
अब पीसीए ने सीधे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और आयकर विभाग से रिपोर्ट मांगी है, जिससे यह मामला निर्णायक चरण में पहुंच चुका है। यदि अगली सुनवाई में आरोपों को समर्थन देने वाले पुख्ता तथ्य सामने आते हैं, तो इन 13 आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ बड़ी प्रशासनिक और कानूनी कार्रवाई तय मानी जा रही है। यह घटना पुलिस बल की अखंडता पर गंभीर सवाल उठाती है और इसकी निष्पक्ष जांच एवं पारदर्शी कार्रवाई की मांग करती है ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके।
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