नई दिल्ली: नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 4 सितंबर को सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शनों के बाद इस्तीफा दे दिया है. इस आंदोलन की जड़ें 2015 के विनाशकारी भूकंप से जुड़ी हैं, जिसने देश के युवाओं में एक नई चेतना पैदा की. इन प्रदर्शनों में सुदन गुरुंग नाम का एक शख्स एक शक्तिशाली युवा नेता के रूप में उभरा है, जिसकी कहानी भूकंप से ही गढ़ी गई है.
2015 के भूकंप ने नेपाल में भारी तबाही मचाई थी, घरों को ढहा दिया और हजारों जिंदगियों को बिखेर दिया. इसी दौरान सुदन गुरुंग ने एक ऐसी भूमिका निभाई जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी. 38 वर्षीय गुरुंग ने उस समय के दर्दनाक अनुभव को साझा करते हुए कहा था, “एक बच्चा मेरी बाहों में मर गया. मैं उस पल को कभी नहीं भूलूंगा.” इस घटना ने गुरुंग के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया.
भूकंप के तुरंत बाद, गुरुंग ने ऑनलाइन एक अपील पोस्ट की और आश्चर्यजनक रूप से लगभग 200 स्वयंसेवक उनकी मदद के लिए आगे आए. इन स्वयंसेवकों ने गांवों में चावल पहुंचाया, स्कूलों के परिसरों में तंबू गाड़े और घायलों को उधार की मोटरसाइकिलों पर अस्पताल पहुंचाया. यह अचानक बना नेटवर्क ‘हामी नेपाल’ (हम नेपाल हैं) के नाम से जाना जाने लगा. 2020 तक, यह 1,600 से अधिक सदस्यों के साथ एक गैर-सरकारी संगठन के रूप में पंजीकृत हो गया.
एक उद्यमी से युवाओं की आवाज तक
सुदन गुरुंग कोई पेशेवर राजनेता नहीं हैं. वह हामी नेपाल के अध्यक्ष हैं, जिसने उन्हें एक स्थानीय उद्यमी से एक अशांत पीढ़ी के प्रतीक में बदल दिया है. गुरुंग कभी डीजे और नाइट क्लब ‘ओएमजी’ के मालिक थे. पिछले कुछ वर्षों में, हामी नेपाल एक जमीनी राहत पहल से बढ़कर सामाजिक जुड़ाव, आपदा प्रतिक्रिया और भूकंप के बाद पुनर्वास के एक व्यापक मंच के रूप में विकसित हुआ है.
गुरुंग का जीवन 2015 के भूकंप से नाटकीय रूप से बदल गया था, जिसमें उनके बेटे सहित लगभग 9,000 लोगों की जान चली गई थी. भूकंप के बाद, उन्होंने इंटरनेट मीडिया का उपयोग कर राहत कार्यों के लिए लगभग 200 स्वयंसेवकों को जुटाया. सोशल मीडिया पर प्रतिबंध से पहले, हामी नेपाल ने तेजी से मोर्चा संभाल लिया था. गुरुंग की टीम ने 8 सितंबर को रैलियों का आह्वान किया था, जिसने सरकार पर दबाव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अंततः प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे का मार्ग प्रशस्त किया. गुरुंग का उदय नेपाल में ‘जेन ज़ेड’ पीढ़ी की बढ़ती राजनीतिक जागरूकता और सोशल मीडिया की शक्ति का एक स्पष्ट उदाहरण है.
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