Uttarakhand: उत्तराखंड के मदरसों में पढ़ाई जाएगी गीता और संस्कृत, चेयरमैन बोले- इससे बढ़ेगा सौहार्द

देहरादून। उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा में एक बड़े और ऐतिहासिक सुधार की घोषणा हुई है। राज्य मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी ने ऐलान किया है कि प्रदेश के मदरसों में श्रीमद्भगवद् गीता का पाठ पढ़ाया जाएगा और साथ ही संस्कृत भाषा की शिक्षा भी शुरू की जाएगी। उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार द्वारा स्कूलों में गीता पाठ शुरू करने की पहल को एक “शानदार कदम” बताते हुए कहा कि इसे मदरसों में भी लागू किया जाएगा।

मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष कासमी ने इस फैसले के पीछे की सोच को स्पष्ट करते हुए कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा, “मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जीवनी रामायण है और भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश श्रीमद्भगवत गीता में हैं। अगर इनका अनुवाद होकर मदरसों और अन्य विद्यालयों में आएगा तो इससे एक नए और बेहतर समाज का निर्माण होगा।”

संस्कृत शिक्षा के लिए MOU अंतिम चरण में

कासमी ने यह भी जानकारी दी कि मदरसों में संस्कृत शिक्षा प्रारंभ करने के लिए शिक्षा विभाग के साथ होने वाला समझौता ज्ञापन (MOU) अपने अंतिम चरण में है। योजना के अनुसार, शुरुआत में कुछ चुनिंदा मदरसों में संस्कृत की पढ़ाई शुरू की जाएगी और फिर इसके सफल क्रियान्वयन के बाद धीरे-धीरे इसे राज्य के सभी मदरसों में लागू कर दिया जाएगा।

“श्रीराम के आदर्शों से वृद्धाश्रमों में आएगी कमी”

इस कदम के सामाजिक लाभों पर जोर देते हुए मुफ्ती शमून कासमी ने कहा कि वह लोगों को समझाएंगे कि भगवान श्रीराम एक ऐसे आदर्श पुत्र थे, जिन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए अपना राजपाट तक छोड़ दिया था। उन्होंने विश्वास जताया कि जब छात्र इन आदर्शों को अपने जीवन में उतारेंगे, तो वे अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करेंगे, जिससे समाज में वृद्धाश्रमों की संख्या में कमी आएगी। उनका मानना है कि श्रीराम की जीवनी और गीता के उपदेशों से पूरा समाज लाभान्वित होगा और इससे हिंदू तथा मुसलमान एक-दूसरे के और करीब आएंगे।

इस साहसिक कदम पर संभावित विरोध को संबोधित करते हुए, कासमी ने मुस्लिम समुदाय से एक अपील भी की। उन्होंने कहा, “मैं मुसलमानों से कहना चाहूंगा कि पहले वे सरकार के इस कदम को समझें और तब इसका विरोध करें। मैं समझता हूं कि इसमें विरोध की कोई गुंजाइश ही नहीं है।”

यह फैसला उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा को आधुनिक बनाने और उसे मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इसका उद्देश्य छात्रों को पारंपरिक दीनी तालीम के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और भाषाओं का ज्ञान भी प्रदान करना है, ताकि वे एक समावेशी और सौहार्दपूर्ण समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकें।

 

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