Himachal: विकास पुरुष वीरभद्र सिंह- चौथी पुण्यतिथि पर हिमाचल ने याद किया अविस्मरणीय योगदान

शिमला। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कद्दावर नेता स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की आज चौथी पुण्यतिथि पर पूरा प्रदेश उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। ‘राजा साहब’ के नाम से लोकप्रिय, वीरभद्र सिंह का छह दशकों से अधिक का राजनीतिक जीवन प्रदेश के विकास और आम लोगों के कल्याण के लिए समर्पित रहा। उनका निधन 8 जुलाई, 2021 को हुआ था, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी उन्हें प्रदेशवासियों के दिलों में जीवित रखे हुए हैं।

वीरभद्र सिंह का सबसे महत्वपूर्ण योगदान शिक्षा के क्षेत्र में, विशेषकर बालिकाओं के लिए, माना जाता है। वह इस बात को गहराई से समझते थे कि सामाजिक बंधनों के कारण प्रदेश की बेटियां दूर जाकर शिक्षा प्राप्त नहीं कर पातीं। इसी सोच के साथ उन्होंने “घर-द्वार पर शिक्षा” की अवधारणा को साकार किया। उन्होंने प्रदेश के दूर-दराज और ग्रामीण इलाकों में स्कूलों का एक मजबूत नेटवर्क स्थापित किया और यह सुनिश्चित किया कि लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए भी भटकना न पड़े। अपने अंतिम कार्यकाल में उन्होंने 30 नए कॉलेज खोले, जिनमें से कई की शुरुआत अस्थायी तौर पर किराये के भवनों में की गई ताकि शिक्षा तुरंत शुरू हो सके।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उनके सुधार दूरगामी थे। उन्होंने न केवल शिमला स्थित इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) की स्थिति में सुधार किया, बल्कि चमियाना में एक सुपर स्पेशिलिटी भवन की नींव भी रखी। इसके अतिरिक्त, टांडा, नेरचौक और नाहन में मेडिकल कॉलेजों की स्थापना में उनका योगदान अविस्मरणीय है, जिससे प्रदेश भर में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा मजबूत हुआ।

वीरभद्र सिंह ने हिमाचल की आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए जलविद्युत क्षेत्र को विकसित करने पर विशेष ध्यान दिया। नाथपा-झाकड़ी जैसी बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं की शुरुआत ने हिमाचल को ‘ऊर्जा राज्य’ के रूप में एक नई पहचान दिलाई। विकास के साथ-साथ उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता दी। उन्होंने प्रदेश में वन माफिया के ‘जंगलराज’ को समाप्त किया और सेब की पैकिंग के लिए लकड़ी की पेटियों की जगह गत्ते के डिब्बों के उपयोग को बढ़ावा देकर जंगलों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राजनीतिक और सामाजिक एकता के लिए भी उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने ‘निचले’ और ‘ऊपरी’ हिमाचल के बीच की खाई को पाटने के लिए कांगड़ा में ‘शीतकालीन प्रवास’ की परंपरा शुरू की और धर्मशाला के तपोवन में दूसरे विधानसभा परिसर का निर्माण करवाया। अपनी पार्टी की विचारधारा से ऊपर उठकर, उन्होंने जबरन धर्मांतरण के खिलाफ एक सख्त कानून बनाया, और ऐसा करने वाला हिमाचल देश का पहला राज्य बना।

वर्ष 1962 में लोकसभा सदस्य के रूप में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले वीरभद्र सिंह छह बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और 87 वर्ष की आयु तक सक्रिय राजनीति में रहे। आज भी उनका नाम हिमाचल के विकास का पर्याय माना जाता है।

 

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