नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारत की शास्त्रार्थ परंपरा सत्य को सहमति से स्थापित करती है। हिंदू मैनिफेस्टो इसी उद्देश्य से प्रस्तावित है, जो व्यापक चर्चा और सहमति के लिए एक प्रमाणित पुस्तक है। उन्होंने कहा कि दुनिया को नया रास्ता दिखाना भारत का कर्तव्य है, क्योंकि पिछले 2000 सालों के आस्तिक, नास्तिक और जड़वादी प्रयोग असफल रहे हैं। भौतिक सुख बढ़ा है, लेकिन असमानता और पर्यावरण को नुकसान भी बढ़ा है।
भागवत ने कहा कि भारत की प्राचीन दृष्टि पर आधारित जीवन व्यवस्था स्थापित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पुस्तक में दिए गए आठ सूत्र पूर्ण हैं, लेकिन उनकी व्याख्या समय और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है। पिछले 1500 सालों से कोई नया शास्त्र नहीं आया है, जिसके कारण जाति व्यवस्था जैसे दोष समाज में आए हैं। उन्होंने कहा कि वेदों की सही व्याख्या आज आवश्यक है। शास्त्रों में अस्पृश्यता या जाति का कोई स्थान नहीं है, जैसा कि उडुपी के संत समाज ने भी कहा है।
भागवत ने जोर देकर कहा कि अहिंसा हमारा स्वभाव है, लेकिन आततायियों को सबक सिखाना भी धर्म है। उन्होंने कहा कि हम पड़ोसियों को परेशान नहीं करते, लेकिन उपद्रव करने वालों को दंड देना राजा का कर्तव्य है। भ्रष्टाचारियों को छोड़ना उचित नहीं है, क्योंकि धर्म में अर्थ और काम को नियंत्रण में रखना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि धर्म को केवल कर्मकांड तक सीमित नहीं रखना चाहिए; यह सत्य, करुणा और पवित्रता है।
उन्होंने कहा कि हिंदू समाज को अपने धर्म को समझने की ज़रूरत है। हिंदू मैनिफेस्टो शास्त्रार्थ के माध्यम से शुद्ध परंपरा को सामने लाएगा और समय के अनुसार उसे ढालने का काम करेगा। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक विश्व कल्याण के लिए है और इसका व्यापक प्रचार-प्रसार होना चाहिए।
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