नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ‘वोट के बदले नोट‘ मामले में 26 साल पुराने अपने फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि घूसखोरी के लिए किसी को भी छूट नहीं दी जाएगी, जिसमें सांसद भी शामिल हैं।
पिछला फैसला:
1998 में, सुप्रीम कोर्ट ने ‘पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले‘ में फैसला सुनाया था कि सांसदों को संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194(2) के तहत सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के बदले आपराधिक मुकदमे से छूट है।
नया फैसला:
सात जजों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को फैसला सुनाया कि:
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अनुच्छेद 105 का हवाला देते हुए सांसदों को घूसखोरी से छूट नहीं दी जाएगी। 
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राज्यसभा चुनाव में सवाल पूछने या वोट देने के लिए पैसे लेने वाले सांसदों पर अभियोजन चलाया जा सकता है। 
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भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है। 
प्रमुख बिंदु:
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मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने पीवी नरसिम्हा मामले में फैसले से असहमति व्यक्त की। 
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कोर्ट ने कहा कि संसद में दिया गया भाषण या वोट घूसखोरी का लाइसेंस नहीं है। 
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इस फैसले का मतलब है कि सांसद अब राज्यसभा चुनावों में भ्रष्टाचार के लिए आपराधिक रूप से जवाबदेह होंगे। 
प्रतिक्रिया:
वकील अश्विनी उपाध्याय ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को संरक्षित करने के लिए आवश्यक है।
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