
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के रेप के एक मामले पर सुनवाई करते हुए बलात्कार पीड़िता की पीड़ा की तुलना महामारी से की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने अपनी बेटी के साथ जो किया है, उसे देखते हुए महामारी समय से बहुत पहले शुरू हो गई थी और उसने अपने पिता के लिए कोई दया नहीं छोड़ी। पिता को निचली अदालत द्वारा लड़की और अन्य गवाहों के साक्ष्य दर्ज होने तक जेल में रहने का आदेश दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट 16 साल से अधिक उम्र की लड़की द्वारा 3 सितंबर, 2020 को उसके पिता को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। दरअसल, लड़की ने अपने पिता पर राजस्थान में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में काम करने वाले प्रिंस नाम के शख्स के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया था। पहली बार जब उसके साथ ऐसा हुआ तब वह चौथी कक्षा में पढ़ रही थी। यह सिलसिला छह साल तक जारी रहा जब तक कि उसने हिम्मत नहीं जुटाई और अप्रैल 2020 में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके कारण उसके पिता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के बलात्कार (धारा 376) और पास्को एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था।
फिर से जेल जाने की संभावना को देखते हुए पिता ने कोर्ट से गुहार लगाई कि वर्तमान में कोविड-19 महामारी पर विचार करें जो कि जेल में उनके जीवन के लिए जोखिम पैदा कर सकती है। पिता ने कोर्ट से गुहार लगाते हुए कहा कि वो मामले में पूरी तरह सहयोग करेगा लेकिन उसे बाहर ही रहने दें।