नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2:1 के बहुमत से एक महत्वपूर्ण फैसले में उन परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी (EC) देने पर लगी रोक हटा दी है, जिन्होंने पहले पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन किया था। यह फैसला केंद्र सरकार और विभिन्न औद्योगिक तथा अवसंरचना संस्थाओं के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने वनशक्ति फैसले के खिलाफ दायर लगभग 40 समीक्षा और संशोधन याचिकाओं पर तीन अलग-अलग फैसले सुनाए।
यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पहले, न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने 16 मई के अपने फैसले में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) और संबंधित अधिकारियों को उन परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी देने से स्पष्ट रूप से रोक दिया था, जिन्होंने पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन किया था। इस रोक से कई बड़ी परियोजनाएं अधर में लटक गई थीं और उन पर भारी जुर्माने का खतरा मंडरा रहा था।
मुख्य न्यायाधीश गवई और न्यायमूर्ति चंद्रन ने 16 मई के उस फैसले को वापस ले लिया है। अब इस मामले पर नए सिरे से विचार करने के लिए एक उपयुक्त पीठ के समक्ष मामला रखा जाएगा। मुख्य न्यायाधीश ने अपने फैसले के पक्ष में तर्क देते हुए कहा कि यदि पूर्वव्यापी मंजूरी की समीक्षा नहीं की जाती, तो “20,000 करोड़ रुपये की सार्वजनिक परियोजनाओं को ध्वस्त करना होगा।” उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उनके इस फैसले की उनके भाई न्यायमूर्ति भुयान ने आलोचना की है।
न्यायमूर्ति भुयान ने इस फैसले पर कड़ी असहमति जताते हुए अपनी पूर्व की स्थिति दोहराई। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी की अवधारणा पर्यावरण कानून में अज्ञात है। न्यायमूर्ति भुयान ने इस विचार को “पर्यावरण न्यायशास्त्र के लिए एक अभिशाप, बुराई को समर्पित एक अभिशाप” बताया, जिससे पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके सख्त रुख का पता चलता है। उनकी असहमति पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाने की जटिलता को उजागर करती है।
मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि अदालत ने यह पाया है कि 2013 की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापन में भारी जुर्माना लगाने पर पर्यावरणीय मंजूरी देने की अनुमति देने की योजना थी। यह दर्शाता है कि सरकार की नीति पहले से ही कुछ शर्तों के तहत पूर्वव्यापी मंजूरी का प्रावधान करती थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले ने चुनौती दी थी।
इस विस्तृत फैसले का इंतजार है, क्योंकि यह देश में पर्यावरणीय शासन और विकास परियोजनाओं के भविष्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने 9 अक्टूबर को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनी थीं। ये सभी अधिवक्ता विभिन्न औद्योगिक और अवसंरचना संस्थाओं तथा सरकारी निकायों की ओर से पेश हुए थे और विवादित 16 मई के फैसले की समीक्षा या संशोधन के पक्ष में थे।
यह फैसला उन उद्योगों और सरकारी निकायों के लिए एक बड़ी जीत है जो पर्यावरणीय मंजूरी के बिना परियोजनाओं को संचालित कर रहे थे या जिन्होंने मानदंडों का उल्लंघन किया था। हालांकि, यह पर्यावरण कार्यकर्ताओं और संगठनों के लिए एक झटका है जो पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की वकालत करते रहे हैं। अब देखना यह होगा कि नई पीठ इस मामले पर किस तरह से आगे बढ़ती है और भविष्य में पर्यावरण कानूनों के प्रवर्तन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। यह फैसला निश्चित रूप से देश में विकास और पर्यावरण संतुलन के बीच चल रही बहस को और तेज करेगा।
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