नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि भारतीय संदर्भ में ‘समाजवादी’ का अर्थ केवल कल्याणकारी राज्य से है, और इन शब्दों को पश्चिमी नज़रिए से नहीं देखना चाहिए। पीठ ने स्पष्ट किया कि धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है और इन याचिकाओं पर 25 नवंबर को आदेश पारित किया जाएगा।
ये याचिकाएँ भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, वकील बलराम सिंह, करुणेश कुमार शुक्ला और अश्विनी उपाध्याय ने दायर की हैं।
सुब्रमण्यम स्वामी ने तर्क दिया कि 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से प्रस्तावना में जोड़े गए ये शब्द, 1973 के केशवानंद भारती केस में स्थापित ‘मूल संरचना’ सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं का इरादा ये शब्द जोड़ने का नहीं था और ये नागरिकों पर राजनीतिक विचारधाराएँ थोपने जैसा है। स्वामी ने यह भी दावा किया कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने इन शब्दों को शामिल करने का विरोध किया था क्योंकि संविधान नागरिकों के चुनाव के अधिकार को छीनकर उन पर विचारधाराएँ नहीं थोप सकता। उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह की प्रविष्टि अनुच्छेद 368 के तहत संसद की संशोधन शक्ति से परे है।