विशेषः जब मसूरी की हसीन वादियों में भारतीयों का आना था मना – The Hill News

विशेषः जब मसूरी की हसीन वादियों में भारतीयों का आना था मना

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पहाड़ों की रानी मसूरी देहरादून के सबसे मशहूर पर्यटन स्थलों में से एक है यहां की खूबसूरत वादियां पर्यटकों से गुलजार रहती है बड़ी संख्या में लोग यहां छुट्टियां मनाने पहुंचते हैं मसूरी का दीदार करने के लिए केवल देश ही नहीं बल्कि विदेशों के लोग भी यहां आते हैं और इन खूबसूरत वादियों में समय बिताते हैं। लेकिन क्या आप जानते है कि ये खुबसुरत वादिया अपने आप कई कहानी समते बैठी है कहानी इस मशहूर पर्यटन स्थल की खोज की कहानी इसके नाम की और कहानी उस समय की जब इन वादियों में भारतीयों का आना मना था ।

कहानी शुरू होती है 1823 से जब मसूरी एक निर्जन पहाड़ हुआ करता था. इतिहासकरा बताते है कि साल 1823 में अंग्रेज प्रशासनिक अफसर एफ.जे. शोर और उनके दोस्त साहसिक मिलट्री अधिकारी कैप्टन यंग घूमते घूमते मसूरी आ पहुंचे थे यहां आकर उन्होंने देखा कि पहाड़ से दून घाटी कितनी सुन्दर दिखाई पढ़ती है ।
कैप्टन यंग और अफसर एफ.जे. शोर मनोरन दृश्य को देखकर इस निर्जन पहाड़ के कालय हो गए इस जगह के प्राकृतिक सौन्दर्य से मोहित होकर दोनो अफसरो ने यहां कैमल बैक की ढलान पर शिकार के लिए एक मचान बनाने का फैसला किया.

साल बीतते गए और साल 1825 में ही एफ.जे. शोर और कैप्टन यंग इस सुंदर पर्यटन स्थल की नींव रखी । इसके कुछ समय बाद ही यहाँ अंग्रेजों ने पहला भवन बनाया. साल 1828 के आते आते यहां लंढौर बाजार की बुनियाद रखी गयी

आज के समय में मसूरी में माल रोड जानी मानी जगहों में से एक है कहा जाता है कि माल रोड अंग्रेजों द्वारा बसाए गए नगरों ‘माल’ के नाम से प्रसिद्घ हुआ। मसूरी की माल रोड पूर्व में पिक्चर पैलेस से लेकर पश्चिम में पब्लिक लाइब्रेरी तक जाती है। ब्रिटिश काल में मसूरी की माल रोड पर लिखा होता था ”भारतीय और कुत्तों को अनुमति नहीं”। जी हां अपने शासनकाल के दौरान अंग्रेजों ने मसूरी मॉल रोड पर भारतीयों के ना चलने का फरमान जारी किया था।

हालांकि भारतीयों द्वारा इन चिन्हों को हटा दिया गया था। ऐसा भी कहा जाता है कि जावरलाल नेहरु के पिता मोतीलाल नेहरू जब भी मसूरी प्रवास पर आते थे तो ही इन नियमो को भंग किया करते थे ।

इन सब के अलावा मसूरी के नाम को लेकर भी एक दिल्चस्प कहानी सामने आती है । मसूरी का नाम मसूरी रखने के पीछे इतिहास एक खास कहानी बताता है कहा जाता है कि मसूरी की खोज करने वाले अंग्रेज अफसर एफ.जे. शोर और उनके दोस्त साहसिक मिलट्री अधिकारी कैप्टन यंग ने ही इस जगह को पहचान दी और पहाड़ो से घिरी इस खूबसूरत जगह को मसूरी नाम दिया। इतिहासकार बताते है कि तब के समय में यहां पर मसूर के पेड़ ज्यादा मात्रा में पाए जाते थे और इसलिए ही मिलिट्री के अधिकारियों ने यहां का नाम मसूरी रख दिया था।

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