देहरादून। राजभवन ने राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण का बिल सात साल के बाद राज्य सरकार को लौटा दिया। पूर्व मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी की सरकार में राज्य आंदोलनकारियों को नौकरी में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश हुआ था। 2015 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने विधान सभा से पास कराकर राज्य आंदोलनकारियों को नौकरी में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण का बिल मंजूरी के लिए राजभवन भेजा था।
राजभवन ने सात साल बाद विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाया है। प्रदेश सरकार ने राजभवन से विधेयक लौटाने के संबंध में नए सिरे पत्राचार कर अनुरोध किया था। अब सरकार इसकी खामियों को दूर कर नए सिरे से बिल ला सकती है। वर्ष 2004 में हुए इस शासनादेश के बाद कुछ आंदोलनकारियों को इसका लाभ मिला, जो सरकारी नौकरी पा चुके हैं। कुछ का चयन हुआ, लेकिन उन्हें नियुक्ति नहीं मिली। इस बीच हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद इस शासनादेश को रद्द कर दिया गया।
सीएम पुष्कर धामी बोले हमने महामहिम से अनुरोध किया था कि वह राज्य आंदोलनकारियों के 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण वाले बिल पर विचार करें या इस पुनर्विचार के लिए वापस लौटा दें। बिल वापस आ गया है, अब इसे नए सिरे से तैयार कर राजभवन भेजा जाएगा।