Chattisgarh: सौ रुपये के झूठे आरोप से बरी होने के बाद अब अपने हक के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहे 83 वर्षीय बुजुर्ग – The Hill News

Chattisgarh: सौ रुपये के झूठे आरोप से बरी होने के बाद अब अपने हक के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहे 83 वर्षीय बुजुर्ग

रायपुर

अक्सर कहा जाता है कि न्याय में देरी होना, न्याय न मिलने के बराबर है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ऐसा ही दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जहां मात्र 100 रुपये की रिश्वत के झूठे आरोप ने एक सरकारी कर्मचारी के जीवन के 39 साल बर्बाद कर दिए। यह कहानी है 83 वर्षीय जागेश्वर प्रसाद अवधिया की, जो कानूनी लड़ाई जीतकर खुद को निर्दोष साबित करने के बाद भी अब अपने वित्तीय अधिकारों के लिए सरकारी दफ्तरों की चौखट पर एड़ियां रगड़ने को मजबूर हैं।

यह पूरा मामला वर्ष 1986 का है। उस समय जागेश्वर प्रसाद अवधिया पर 100 रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा था। इस एक आरोप ने उनके हंसते-खेलते परिवार और करियर को ग्रहण लगा दिया। मामला दर्ज होने के बाद उन्हें छह साल तक निलंबन का दंश झेलना पड़ा। इतना ही नहीं, इस केस के चलते उनका प्रमोशन और इंक्रीमेंट भी रोक दिया गया। अवधिया ने हार नहीं मानी और अपने सम्मान की लड़ाई लड़ते रहे। आखिरकार 39 साल की लंबी और थका देने वाली कानूनी लड़ाई के बाद हाई कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया और निर्दोष करार दिया।

अदालत से जीत मिलने के बाद लगा कि अब उनकी मुसीबतें खत्म हो जाएंगी, लेकिन प्रशासन की बेरुखी ने उनके सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है। जागेश्वर प्रसाद अवधिया ने 29 सितंबर 2025 को छत्तीसगढ़ अधोसंरचना विकास निगम (सीआइडीसी) के प्रबंध निदेशक को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने अपनी सस्पेंशन अवधि के दौरान काटी गई सैलरी, पेंशन और अन्य रुके हुए भुगतान की मांग की, जिसकी कुल राशि लगभग 30 लाख रुपये बनती है।

हैरानी की बात यह है कि विभागीय अधिकारी पिछले तीन महीने से उन्हें केवल टाल रहे हैं। अधिकारी कभी सर्विस बुक न मिलने का बहाना बनाते हैं, तो कभी तकनीकी पेंच फंसा देते हैं। सीआइडीसी की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि वर्ष 2001 में अवधिया मध्य प्रदेश सड़क परिवहन निगम के कर्मचारी थे, इसलिए उनके बकाये का भुगतान मध्य प्रदेश से होना चाहिए। हालांकि, यह तर्क इसलिए भी गले नहीं उतरता क्योंकि वर्ष 2004 में खुद सीआइडीसी ने ही उनके रिटायरमेंट से जुड़ी राशि जारी की थी। इस मामले में 21 नवंबर 2025 को मध्य प्रदेश सड़क परिवहन निगम ने भी स्थिति स्पष्ट करते हुए कह दिया है कि जागेश्वर अवधिया सीआइडीसी के ही कर्मचारी हैं।

इस पूरे घटनाक्रम का सबसे दुखद पहलू अवधिया का निजी जीवन रहा। उन्होंने बताया कि निलंबन और झूठे केस के कारण न केवल उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई बुरी तरह प्रभावित हुई, बल्कि उनकी पत्नी यह तनाव बर्दाश्त नहीं कर सकीं और उनका निधन हो गया। पत्नी के जाने के बाद भी वे अकेले लड़ते रहे। अब जीवन के अंतिम पड़ाव पर, 83 वर्ष की आयु में भी वे अपना हक पाने के लिए विभाग के चक्कर काट रहे हैं।

इस पूरे मामले पर छत्तीसगढ़ अधोसंरचना विकास निगम के एमडी राजेश सुकुमार टोप्पो का कहना है कि भुगतान को लेकर सभी प्रक्रियाएं जारी हैं। उनका कहना है कि दस्तावेजों के एकत्र होने के बाद भुगतान कर दिया जाएगा। अब देखना यह है कि सरकारी फाइलों में उलझा एक बुजुर्ग का यह संघर्ष कब समाप्त होता है और उन्हें उनके हक का पैसा कब मिलता है।

 

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