उत्तरकाशी. देश के तीसरे सबसे बड़े और सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण गंगोत्री नेशनल पार्क में अब अगले कुछ महीनों तक इंसानी दखल पूरी तरह से बंद हो गया है। चीन सीमा से लगे इस पार्क के गेट रविवार को आधिकारिक तौर पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। कड़ाके की ठंड और भारी बर्फबारी की संभावना को देखते हुए प्रशासन ने यह कदम उठाया है। अब प्रकृति प्रेमी और पर्यटक अगले साल एक अप्रैल के बाद ही इस खूबसूरत पार्क का दीदार कर सकेंगे।
पार्क के बंद होने की प्रक्रिया रविवार दोपहर एक बजे पूरी की गई। पार्क के उप निदेशक हरीश नेगी की मौजूदगी में वन विभाग की टीम ने गर्तांगली और कनखू बैरियर के पास मुख्य गेट पर ताला जड़ दिया। आमतौर पर नियम के अनुसार गंगोत्री नेशनल पार्क के गेट हर साल 30 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन इस बार रविवार को यह प्रक्रिया पूरी की गई। अब यह पूरा इलाका अगले छह महीनों तक बर्फ की सफेद चादर में लिपटा रहेगा और यहां केवल वन्यजीवों का राज होगा।
इस साल के पर्यटन सीजन के आंकड़ों पर नजर डालें तो गंगोत्री नेशनल पार्क ने अच्छी खासी कमाई की है। इस सीजन में कुल 29,162 पर्यटक पार्क की खूबसूरती निहारने पहुंचे। इन पर्यटकों की आमद से पार्क प्रशासन को 80.96 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ है। हालांकि, प्रशासन का लक्ष्य इससे कहीं ज्यादा था। विभाग ने इस साल 85 लाख रुपये से अधिक राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन वह इसे पूरा करने से थोड़ा चूक गया। इसके पीछे का मुख्य कारण धराली में आई प्राकृतिक आपदा रही। आपदा की वजह से पार्क क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही करीब डेढ़ महीने तक प्रभावित रही, जिससे राजस्व के आंकड़ों में गिरावट दर्ज की गई। अगर मौसम साथ देता तो यह आंकड़ा और भी बेहतर हो सकता था।
भले ही पर्यटकों के लिए पार्क के दरवाजे बंद हो गए हों, लेकिन वन विभाग की नजरें अभी भी पार्क के भीतर बनी रहेंगी। पार्क के उप निदेशक हरीश नेगी ने बताया कि गेट बंद करने से पहले वन विभाग ने पार्क के प्रमुख ट्रेक रूटों और संवेदनशील स्थानों पर उच्च तकनीक वाले ट्रैप कैमरे स्थापित किए हैं। इन कैमरों का मकसद शीतकाल के दौरान वन्यजीवों की गतिविधियों पर नजर रखना है। जब पूरा पार्क बर्फ से ढक जाएगा, तब ये कैमरे वहां विचरने वाले दुर्लभ जानवरों की तस्वीरें कैद करेंगे, जिससे उनके व्यवहार और संख्या का अध्ययन करने में मदद मिलेगी।
गंगोत्री नेशनल पार्क दुर्लभ प्रजाति के हिम तेंदुओं यानी स्नो लेपर्ड का प्राकृतिक घर माना जाता है। एक अनुमान के मुताबिक इस पार्क में हिम तेंदुओं की संख्या करीब 35 है। अब जब मानवीय गतिविधियां पूरी तरह बंद हो जाएंगी, तो ये हिम तेंदुए और अन्य वन्यजीव बेखौफ होकर अपने प्राकृतिक आवास में विचरण कर सकेंगे। ट्रैप कैमरों के माध्यम से इन दुर्लभ जीवों की शीतकालीन गतिविधियों का पता चलेगा जो वन्यजीव संरक्षण की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा। फिलहाल अप्रैल तक के लिए घाटी में सन्नाटा पसरा रहेगा और इंतजार बसंत का होगा जब दोबारा पर्यटकों के लिए इसके दरवाजे खोले जाएंगे।