नई दिल्ली: पाकिस्तान की संसद ने बुधवार को भारी हंगामे के बीच 27वें संवैधानिक संशोधन को मंजूरी दे दी है. इस विधेयक को दो-तिहाई बहुमत से पारित किया गया है, जिसके तहत पाकिस्तान के मौजूदा सेना प्रमुख असीम मुनीर के अधिकारों में उल्लेखनीय विस्तार किया गया है. यह फैसला पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य परिदृश्य में दूरगामी परिणाम वाला माना जा रहा है.
इस नए संशोधन के बाद पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर को अब रक्षा बलों के प्रमुख के एक नए पद पर पदोन्नत किया जाएगा. इस पद पर रहते हुए वह औपचारिक रूप से नौसेना और वायु सेना की कमान भी संभालेंगे, जिससे देश की सभी सैन्य शाखाओं पर उनकी प्रत्यक्ष कमान स्थापित हो जाएगी. एक और महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि अपना वर्तमान कार्यकाल पूरा होने के बाद भी वह अपने पद पर बने रहेंगे और उन्हें आजीवन कानूनी छूट प्राप्त होगी. यह प्रावधान विशेष रूप से चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि यह पद पर बने रहने और कानूनी सुरक्षा का एक अभूतपूर्व विस्तार है.
इस संवैधानिक संशोधन को मंजूरी देने के लिए बुधवार को पाकिस्तान की संसद में जमकर हंगामा हुआ. नेशनल असेंबली ने इस विधेयक को दो-तिहाई से भी ज्यादा मतों के साथ पारित किया, लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया. विपक्षी नेताओं ने सरकार के इस कदम को “लोकतंत्र का अंतिम संस्कार” करार दिया है. आलोचकों का तर्क है कि यह कदम देश के लोकतांत्रिक सिद्धांतों को गंभीर रूप से कमजोर करता है और सेना को अत्यधिक शक्ति प्रदान करता है, जिससे सत्ता का संतुलन बिगड़ सकता है.
संविधान में यह संशोधन ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान पहले से ही कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है. राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और सुरक्षा संबंधी मुद्दे देश के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं. ऐसे में सेना प्रमुख की शक्तियों में यह वृद्धि कई विश्लेषकों के लिए चिंता का कारण बनी हुई है. उनका मानना है कि यह नागरिक सरकार की शक्ति को और कम कर सकता है और सेना के प्रभाव को बढ़ा सकता है, जो अतीत में भी पाकिस्तान के लोकतंत्र के लिए एक चुनौती रहा है.
यह संशोधन सर्वोच्च न्यायालय के कार्यक्षेत्र को सीमित करने का भी प्रावधान करता है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करता है. आलोचकों का मानना है कि यह विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन को बिगाड़ सकता है, जो किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है. विपक्ष ने लगातार इस कदम को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है और इसके खिलाफ अपनी आवाज उठाई है.
इस विधेयक के पारित होने से पाकिस्तान की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ गया है. अब देखना यह होगा कि सेना प्रमुख की बढ़ी हुई शक्तियां देश के भविष्य को किस दिशा में ले जाती हैं और नागरिक समाज तथा विपक्षी दल इस बदलाव पर किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं. यह संशोधन न केवल पाकिस्तान के आंतरिक मामलों को प्रभावित करेगा, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीति पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है. यह मुद्दा आने वाले समय में पाकिस्तान की राजनीति में एक प्रमुख बहस का विषय बना रहेगा.
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