नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों (एनसीआर) में आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी और उससे जुड़ी समस्याओं पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कथित रूप से दिए गए एक फैसले ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। इस फैसले पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने इस आदेश को मानवता और विज्ञान के विरुद्ध एक प्रतिगामी कदम बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की है।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को हटाने का आदेश दिए जाने की खबर सामने आई थी। इस कथित आदेश के अनुसार, यह प्रक्रिया अगले आठ महीनों के भीतर पूरी की जानी थी। इस फैसले पर जहां कुछ लोगों ने राहत की सांस ली और इसे सार्वजनिक सुरक्षा के लिए जरूरी बताया, वहीं पशु प्रेमियों और कई संगठनों ने इसका पुरजोर विरोध किया। इसी कड़ी में राहुल गांधी ने भी अपनी असहमति जताते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट साझा किया।
राहुल गांधी ने क्या कहा?
राहुल गांधी ने अपने पोस्ट में इस फैसले को बेहद चिंताजनक बताया। उन्होंने लिखा, “दिल्ली एनसीआर से सारे आवारा कुत्ते हटाने का आदेश मानव और विज्ञान को कई दशकों पीछे ले जाएगा। यह बेजुबान आत्माएं कभी समस्या नहीं हो सकतीं, जिन्हें मिटाया जा सके।” उन्होंने समस्या के समाधान के लिए एक मानवीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की वकालत की। उनके अनुसार, कुत्तों को हटाने के बजाय उनके प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया, “बिना किसी ज्यादती के आवारा कुत्तों को पनाह देने, वैक्सीनेशन करवाने और कम्युनिटी केयर की मदद से गलियों को सुरक्षित रखा जा सकता है।”
उन्होंने इस तरह के कदम को क्रूरतापूर्ण और अदूरदर्शी करार देते हुए कहा, “आवारा कुत्तों को पूरी तरह से हटाना एक क्रूर कदम है, जो किसी भी रूप में दूरदर्शी नहीं है। हमें सार्वजनिक सुरक्षा और जानवरों के कल्याण को एक-साथ लेकर चलना होगा।”
दो ध्रुवों में बंटी जनता
सुप्रीम कोर्ट के इस कथित आदेश ने समाज को दो खेमों में बांट दिया है। एक तरफ वे लोग हैं जो आवारा कुत्तों के हमलों, विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों पर होने वाले हमलों से चिंतित हैं। उनका मानना है कि सड़कों पर घूमते कुत्ते एक गंभीर खतरा बन चुके हैं और नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि है। इसलिए, वे इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर पशु अधिकार कार्यकर्ता, स्वयंसेवी संस्थाएं और आम नागरिक हैं, जिनका मानना है कि यह समस्या कुत्तों की नहीं, बल्कि लचर सरकारी व्यवस्था और अधूरे एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) कार्यक्रमों की है। उनका तर्क है कि कुत्तों को उनके इलाके से हटाने से इकोसिस्टम का संतुलन बिगड़ता है और यह कोई स्थायी समाधान नहीं है। वे टीकाकरण और नसबंदी को ही एकमात्र वैज्ञानिक और मानवीय समाधान मानते हैं।
राहुल गांधी की इस प्रतिक्रिया ने इस सामाजिक मुद्दे को एक राजनीतिक आयाम भी दे दिया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इस संवेदनशील मुद्दे पर आगे क्या रुख अपनाता है और कैसे आम नागरिकों की सुरक्षा तथा बेजुबान जानवरों के अधिकारों के बीच एक संतुलन स्थापित कर पाता है।