Bollywood: गुरु दत्त की जन्मशती- दादा की विरासत को आगे बढ़ा रहीं पोतियां, बोलीं- ‘उनकी फिल्मों का रीमेक न बने’

मुंबई। हिंदी सिनेमा को ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ और ‘साहब बीबी और गुलाम’ जैसी कालजयी और काव्यात्मक फिल्में देने वाले महान फिल्मकार गुरु दत्त का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। 9 जुलाई 1925 को जन्मे गुरु दत्त ने अपनी फिल्मों में विषाद और कला की जो गहरी समझ दिखाई, वह आज भी सिनेप्रेमियों और फिल्मकारों के लिए एक मिसाल है। भले ही वह आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत को उनकी पोतियां करुणा और गौरी दत्त पूरी शिद्दत से आगे बढ़ा रही हैं।

दादा के नक्शेकदम पर पोतियां

गुरु दत्त के दिवंगत बेटे अरुण दत्त की बेटियां, करुणा और गौरी, फिल्म इंडस्ट्री में ही अपनी पहचान बना रही हैं। उनकी मां इफत ने उनके सपनों को साकार करने में अहम भूमिका निभाई। करुणा दत्त ने मशहूर निर्देशक अनुराग कश्यप के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया है और फिलहाल वह विक्रमादित्य मोटवाणी के साथ वेब सीरीज ‘ब्लैक वॉरंट सीजन 2’ में काम कर रही हैं। वहीं, उनकी बहन गौरी ने भी नितिन कक्कड़ जैसे कई निर्देशकों को असिस्ट करने के बाद अब एक विज्ञापन फिल्म पर काम कर रही हैं और जल्द ही निर्देशक एंथनी के साथ एक फीचर फिल्म से जुड़ेंगी।

अंतर्मुखी लेकिन समर्पित इंसान

गुरु दत्त के व्यक्तिगत जीवन के बारे में उनकी बहू इफत बताती हैं, “हमें इस बात का बहुत गर्व है कि आज भी लोग उनका नाम इतने सम्मान से लेते हैं। अरुण (गुरु दत्त के बेटे) काफी छोटे थे जब वह नहीं रहे, लेकिन वह हमेशा बताते थे कि गुरु दत्त साहब बच्चों के साथ घर में थोड़े सख्त थे। वह बहुत ही साधारण जीवन जीते थे और अंतर्मुखी स्वभाव के थे।” उन्होंने यह भी बताया कि गुरु दत्त अपने बच्चों को कभी फिल्मों के सेट पर नहीं ले गए, लेकिन परिवार के साथ लोनावाला स्थित फार्म हाउस पर छुट्टियां मनाने जरूर जाते थे।

दादा से मिली अनमोल सीख

अपनी विरासत और दादा से मिले परिचय पर करुणा कहती हैं, “बचपन में वह हमारे लिए सिर्फ दादाजी थे, जिनकी तस्वीरें घर में लगी थीं। बड़े होने पर हमें अहसास हुआ कि उन्होंने इंडस्ट्री पर कितनी गहरी छाप छोड़ी है।” दादा से मिली सीख पर वह कहती हैं, “उनके बारे में लिखी किताबों से समझ आया कि वह अपने काम के प्रति कितने समर्पित थे। उनसे मुझे यही सीख मिली है कि सफलता बाद की बात है, पहले अपना काम पूरी मेहनत और शिद्दत से करो।”

गौरी एक और प्रेरक किस्सा साझा करती हैं, “मुझे बताया गया है कि दादाजी जब भी शूटिंग पर बाहर जाते थे, तो रिश्तेदारों को चिट्ठी लिखते थे। एक चिट्ठी में उन्होंने लिखा था कि ‘कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। काम बस काम होता है। जो काम नहीं करते वो बुद्धु होते हैं।’ उनकी यह एक लाइन मेरे जेहन में हमेशा रह गई।”

रीमेक के सख्त खिलाफ

गुरु दत्त की क्लासिक फिल्मों के रीमेक पर दोनों बहनों का रुख बिल्कुल साफ है। करुणा और गौरी, दोनों का मानना है कि उनकी फिल्मों की आत्मा और जादू को दोबारा बनाना संभव नहीं है, इसलिए वे उनकी फिल्मों के रीमेक का समर्थन नहीं करतीं।

गुज़रे दौर की मशहूर अभिनेत्री तनुजा भी गुरु दत्त को याद करते हुए कहती हैं, “मैंने उनकी फिल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ में काम किया था। वह एक अच्छे इंसान थे। मुझे याद है कि उनके पास एक बहुत बड़ी लाइब्रेरी थी और हम अक्सर किताबों पर बातें करते थे।” यह यादें गुरु दत्त की कलात्मक और बौद्धिक शख्सियत को और भी रोशन करती हैं, जो आज भी नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।

 

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