Himachal: आपदा के बीच मानदेय की ‘बहार’- हिमाचल में निगम-बोर्ड अध्यक्षों का वेतन हुआ दोगुने से भी ज्यादा

शिमला।

हिमाचल प्रदेश में एक ओर जहां भारी बरसात और आपदा से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है, वहीं दूसरी ओर सुक्खू सरकार ने एक महत्वपूर्ण और चौंकाने वाला फैसला लेते हुए सार्वजनिक उपक्रमों (निगम-बोर्डों) के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों के मानदेय में भारी बढ़ोतरी कर दी है। इस फैसले के बाद उनका मासिक मानदेय 30,000 रुपये से सीधे 80,000 रुपये हो गया है, जो दोगुने से भी अधिक की वृद्धि है। आपदा के समय में लिए गए इस निर्णय को लेकर प्रदेश में चर्चा का दौर शुरू हो गया है और सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

मानदेय के साथ भत्तों में भी भारी इजाफा

वित्त विभाग के विशेष सचिव सौरभ जस्सल द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, केवल मानदेय ही नहीं, बल्कि अन्य भत्तों में भी उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। अध्यक्षों और उपाध्यक्षों का आवास भत्ता (HRA) 7,200 रुपये से बढ़ाकर 25,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है। वहीं, सत्कार भत्ते में 400 रुपये की मामूली वृद्धि कर इसे 3,100 रुपये से 3,500 रुपये किया गया है। इन सभी वृद्धियों को मिलाकर अब प्रत्येक अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को प्रतिमाह लगभग 1.11 लाख रुपये प्राप्त होंगे। वाहन भत्ता 8 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से जारी रहेगा और टेलीफोन भत्ते में भी संशोधन किया गया है।

समय के साथ बढ़ता गया मानदेय

यह पहली बार नहीं है जब राजनीतिक नियुक्तियों वाले इन पदों पर मानदेय बढ़ाया गया है। समय-समय पर सरकारें इन नेताओं को खुश करने के लिए ऐसी वृद्धियां करती रही हैं। 1998 में धूमल सरकार के दौरान यह मानदेय मात्र 3,500 रुपये था, जो 2007 में बढ़कर 10,000 रुपये और 2012 में 15,000 रुपये हुआ। पिछली जयराम सरकार के समय में इसे 30,000 रुपये प्रतिमाह किया गया था, और अब सुक्खू सरकार ने इसमें एकमुश्त 50,000 रुपये की भारी वृद्धि कर दी है।

आपदा के समय में फैसले पर उठे सवाल

सरकार का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब राज्य भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है। प्रदेश के कई हिस्सों में जान-माल का भारी नुकसान हुआ है और सरकार राहत तथा पुनर्वास कार्यों के लिए संसाधन जुटाने की बात कर रही है। ऐसे में जब आम जनता मुश्किलों का सामना कर रही है, तब निगम-बोर्डों में नियुक्त राजनीतिक नेताओं के वेतन-भत्तों में इतनी बड़ी वृद्धि करना कई लोगों को तर्कसंगत नहीं लग रहा है। इस कदम को लेकर विपक्ष के साथ-साथ आम जनता में भी सरकार की प्राथमिकताओं को लेकर एक बहस छिड़ गई है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार अपने इस फैसले का किस प्रकार बचाव करती है।

 

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