हल्द्वानी : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय समाज में कुटुंब महज पत्नी-पत्नी बच्चों तक सीमित नहीं है। बल्कि कुटुंब में समाज, मानवता व राष्ट्र को समर्पित करने की चिंता निहित है। धर्म का आचरण जोडऩे की शिक्षा देता है। यही कारण है कि भारतीय कुटुंब व्यवस्था का अध्ययन पाश्चात्य देश कर रहे हैं। हमें अपने कुटुंब की अवधारणा को और अधिक परिष्कृत करना होगा, ताकि भारत फिर से विश्व गुरु बने। आरएसएस के प्रांतीय स्तर की तीन दिवसीय बैठक के दूसरे दिन रविवार को आम्रपाली संस्थान में परिवार प्रबोधन का आयोजन हुआ। एक घंटे के संबोधन में संघ प्रमुख भागवत ने आयोजन में शामिल 900 परिवारों को गृहस्थ आश्रम का महत्व समझाया। उन्होंने प्रतीकों, कहानियों के जरिये भी गृहस्थ की महत्ता का बखान किया। कहा, गृहस्थ में बाकी तीन आश्रमों (ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ व संन्यास) की सेवा का भी दायित्व है। कुटंब में केवल पिता कमाते हैं, माता घर चलाती हैं या फिर दोनों कमाते हैं, इतना भर नहीं है। बाल काटने वाला, कपड़े धोने वाला, खाना बनाने वाला या फिर पालतू जानवर भी हमारे परिवार के सदस्य हैं। जहां हमारा खून का रिश्ता नहीं है, लेकिन यह अपनापन ही कुटुंब है।