देहरादून: केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव के लिए सोमवार शाम चुनाव प्रचार थम गया। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। भाजपा के लिए यह प्रधानमंत्री मोदी से जुड़ाव के कारण प्रतिष्ठा का प्रश्न है, जबकि कांग्रेस बदरीनाथ उपचुनाव के नतीजों को दोहराने की उम्मीद कर रही है।
भाजपा की रणनीति: भाजपा केंद्र और राज्य सरकार की विकास योजनाओं, विशेष रूप से केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण और प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर जीत का भरोसा रखती है। केदारनाथ धाम के पिछले दस वर्षों में हुए कायाकल्प को भी वह प्रमुखता से दिखा रही है। समान नागरिक संहिता, सख्त नकलरोधी कानून, और मतांतरण विरोधी कड़े प्रावधानों जैसे कदमों को भी भाजपा अपनी रणनीति का हिस्सा बना रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पांच जनसभाएँ और दो बाइक रैलियाँ की हैं।
कांग्रेस की रणनीति: कांग्रेस की रणनीति केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ पिछले 7-10 वर्षों की एंटी-इनकम्बेंसी पर केंद्रित है। कांग्रेस इस उपचुनाव में बदरीनाथ उपचुनाव की तरह ही रणनीति अपनाने की कोशिश कर रही है। प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत आदि ने क्षेत्र में कई दिन बिताए हैं।
प्रमुख प्रत्याशी और निर्दलीय का प्रभाव: भाजपा की ओर से आशा नौटियाल और कांग्रेस की ओर से मनोज रावत चुनाव मैदान में हैं, दोनों ही पहले इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन सिंह चौहान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, आम तौर पर उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल का पलड़ा भारी रहता है, लेकिन हाल के दो उपचुनावों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन, वे सीटें पहले से भाजपा के पास नहीं थीं। केदारनाथ उपचुनाव भाजपा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रधानमंत्री मोदी के नाम से जुड़ा हुआ है। मतगणना 23 नवंबर को होगी।
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