देहरादून। उत्तराखंड की पांचवीं विधानसभा गठन के लिए होने वाले चुनाव में दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस की ओर से वार पलटवार तेज हो चुका है। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चेहरा हैं, लेकिन पार्टी ” मोदी धामी ” के नारे पर चुनावी रण में उतरी है। प्रचार का अंतिम दौर शुरू हो चुका है, जिसमें धामी का चेहरा कहीं पीछे छूटता नजर आ रहा है, पार्टी अब केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे रखकर कांग्रेस को चुनौती दे रही है। उधर, कांग्रेस में चेहरा बेशक घोषित नहीं हैं, लेकिन चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ही फ्रंट पर हैं। मोदी, शाह, नड्डा से लेकर तमाम भाजपा नेतृत्व उन्हीं को सामने रखकर प्रचार कर रहा है। वहीं हरीश रावत भी पूरे प्रदेश में अकेले मोर्चा संभालते हुए दिख रहे हैं। हालांकि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व राहुल और प्रियंका गांधी भी प्रदेश में प्रचार के लिए दौरे कर रहे हैं, लेकिन हरदा मोर्चे पर सबसे अग्रणी दिख रहे हैं।
खटीमा
चुनाव के नतीजे आने पर अगर सबसे पहले किसी सीट पर प्रदेशभर की नजर होगी तो वो होगी खटीमा विधानसभा सीट। वजह साफ है, उधमसिंह नगर जिले की ये सीट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का गढ है। सीएम धामी इस सीट पर दो बार जीत दर्ज कर चुके हैं। 2012 में उन्होंने कांग्रेस के देवेंद्र चंद को 5394 वोटों से हराया था और फिर 2017 में कांग्रेस के ही भुवन चंद्र कापड़ी को मात दी थी। जीत का हैट्रिक बनाने के लिए धामी को एक बार फिर उनसे सीधी टक्कर ले रहे भुवन चंद्र कापड़ी को मात देनी है। यूं तो उन्हे करीब आधा दर्जन प्रत्याशी मैदान में घेरने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन पिछले चुनावों में मात्र 2709 वोटों से हारने वाले कापड़ी इस बार उनकी चिंता बढ़ा सकते हैं क्योंकि स्थानीय स्तर पर हुए विकास कार्य अगर क्षेत्र मे मुख्यमंत्री को मजबूत करते हैं तो मुस्लिम समाज व सिख समुदाय में भाजपा के प्रति जबरदस्त गुस्सा कापड़ी को भी मजबूती दे रहे हैं। आपको बता दें, सबसे अधिक पहाड़ी वोट बैंक और थारू जनजाति के वोट बैंक वाली इस सीट पर आप ने भी मौजूदगी दर्ज करवाने की कोशिश करते हुए आप के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एसएस कलेर को चुनावी मैदान में उतारा है। देखना होगा कि इस ह़ॉट सीट के 1,19,980 वोटरों को साधने मे कौन कामयाब होगा।
लालकुआं
नैनीताल जिले की लालकुआं विधानसभा सीट ने तो कांग्रेस के टिकट बंटवारे के समय पर ही सबका ध्यान खुद की ओर खींच लिया था क्योंकि पिछले चुनावों में किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण से हारने वाले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस बार इस सीट के माध्यम से हार का कलंक धोने की कोशिश कर रहे हैं। 2008 के परिसीमन के बाद के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर 2012 में 25000 वोट के साथ निर्दलीय प्रत्याशी हरीश चंद्र दुर्गापाल ने जीत दर्ज की थी, और 2017 मे इस सीट को 16341 वोटों के साथ भाजपा के नवीन चंद्र दुमका ने जीता था। इस बार इसी पर हरदा भाजपा के मोहन बिष्ट से टकराएंगे। देखना दिलचस्प होगा कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री इस बार हार का दाग धो पाएंगे।
गंगोत्री
उत्तराखंड में बदले चुनावी समीकरणों के बीच इस बार गंगोत्री विधानसभा सीट प्रदेश की सबसे हॉट सीटों में एक है। कांग्रेस से विजयपाल सजवाल और बीजेपी से सुरेश चौहान के चुनावी मैदान में होने के अलावा इस बार तीसरे सशक्त विकल्प के तौर पर उभरी आम आदमी पार्टी ने सीएम पद के प्रत्याशी कर्नल अजय कोठियाल को मैदान में उतारा है जिससे चुनावी समीकरण त्रिकोणात्मक बन गए हैं। 2002 में विजयपाल सजवाल यहां से विधायक थे लेकिन साल 2007 में भाजपा नेता गोपाल सिंह रावत से उन्होने शिकस्त खाई। 2012 हालांकि रावत को हार का सामना करना पड़ा लेकिन फिर से उन्होने 2017 में कांग्रेस उम्मीदवार विजयपाल सिंह सजवाण को 9610 वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी। रावत के निधन के बाद इस बार बीजेपी ने सुरेश चौहान पर दांव खेला है लेकिन कोठियाल की मौजूदगी ने जीत के फासले दोनों ही दलों क लिए बढा दिए है।
हरिद्वार ग्रामीण
हरिद्वार जिले की हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीट हमेशा से ही चर्चाओं में रहती आई है। हाई प्रोफाइल होने के साथ ही ये प्रदेश की हॉट सीट भी है क्योंकि इस बार मैदान में पिता की हार का बदला लेने कांग्रेस की प्रत्याशी बनकर हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत उतरी हैं। भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री यतीश्वरानंद से 2017 के विधानसभा चुनावों से हरीश रावत को बड़े अंतराल से हराया था। सीट से दो बार के विधायक यतीश्वरानंद अनुपमा रावत के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। वो भी तब जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने करीबी यतीश्वरानंद को विजय बनाने के लिए हर संभव सहयोग दिया है। वैसे ऐसा विधानसभा क्षेत्र जहां खनन का कारोबार विधायकों की किस्मत तय करता है, इस पर सियासी जंग देखना रोचक तो है।
हल्द्वानी
उत्तराखंड की हॉट सीटों का जिक्र हो तो नैनिताल जिले की हल्द्वानी विधानसभा सीट की चर्चा स्वाभाविक है। कांग्रेस नेता इंदिरा हृदयेश के क्षेत्र पर वर्चस्व के चलते इस सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। सीट से 4 में से 3 चुनाव जीतने में सफल रही इंदिरा के निधन के बाद इस बार कांग्रेस ने उनके बेटे सुमित हृदयेश को टिकट दिया है. तो वहीं बीजेपी ने दूसरी बार इस सीट पर हल्द्वानी नगर निगम में बीजेपी से मेयर रहे जोगेंद्र रौतेला को टिकट दिया है. जबकि इस सीट पर चुनाव को इस बार AIMIM के अब्दुल मतीन सिद्दीकी रोचक बनाने में जुटे हुए हैं. अब्दुल मतीन पूर्व में कांग्रेस सरकार के दौरान राज्यमंत्री हुआ करते थे. ब्राह्मण मतदाताओं के अलावा 1,14,739 वालू इस सीट को दलित व मुस्लिम मतदाताओं की संख्या प्रभावित करती है इसलिए इंदिरा हृदयेश की गैरमौजूदगी में पहली बार चुनाव लड़ रही कांग्रेस के लिए सीट बचाना चुनौती है।
नरेंद्र नगर
कोटद्वार
कोटद्वार विधानसभा की बात की जाए तो वर्तमान में कोटद्वार विधानसभा की सीट हॉट सीटों में शुमार हो गयी है, विधानसभा कोटद्वार में भारतीय जनता पार्टी से पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूडी की सुपुत्री रितू खंडूडी मैदान में है तो कांग्रेस पार्टी ने पूर्व काबीना मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी पर पूरा भरोसा जताया है। वहीं आम आदमी पार्टी भी अपना चुनाव प्रचार को धार देने की कोशिश में लगी हुई है, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी धीरेन्द्र सिंह चौहान राष्ट्रीय पार्टियों के मुकाबले अपने को कोटद्वार का सच्चा हितैशी बताने का कोशिश कर रहे है। ऋतु खंडूड़ी के लिए यह सीट नई है, जबकि सुरेंद्र सिंह नेगी इस सीट से पहले भी विधायक रह चुके हैं. इसके अलावा उनकी पत्नी यहां से मेयर हैं और अच्छा खासा जनाधार नेगी परिवार का इस सीट पर बताया जाता है. हरक सिंह रावत का भाजपा औऱ सीट से पत्ता साफ होने के बाद जो समीकरण बदले उसने इस सीट की लड़ाई दिलचस्प बना दी है।
गदरपुर
उधम सिंह नगर जिले में स्थित गदरपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय की मौजूदगी गदरपुर को वीआइपी सीट में शुमार करती है। वह लगातार दो बार से यहां से जीतकर आगे बढ़े हैं। इससे पहले बाजपुर से भी वह दो बार जीत दर्ज कर चुके थे। बता दें, साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में बाजपुर सीट आरक्षित हो गयी थी. जिसमे अरविंद पांडे को अपनी सीट बदलनी पड़ी. गदरपुर वर्ष, 2002 व 2007 में बसपा से प्रेमानंद महाजन चुनाव जीते थे, जिन्हें अलगे चुनाव में पांडेय ने हराया था। यानि शिक्षा मंत्री के लिए भी ये मौका हैट्रिक का है। लेकिन अरविंद पांडे कईं विवादों मे भी घिरे हैं। उन पर दर्जनों मुकदमे अभी भी जारी हैं. इसमें मुख्य रूप से अधिकारियों से मारपीट, जसपुर में लवजेहाद के मामले में चक्का जाम जैसे मुकदमे हैं. वहीं सबसे विवादित मूर्ति देवी हत्या कांड मामला, कॉम्प्रोमाइज होने के बाद खत्म हो गया. दूसरी ओर उन्हें गदरपुर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी प्रेमानंद महाजन से टक्कर मिलेगी. प्रेमानंद महाजन 2002 और 2007 में इस सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं. यानि मुकाबला टक्कर का होगा। तो देखना ये होगा कि क्या अरविंद पांडे यहां से इस दफा जीत हासिल कर पाएंगे या उनका रिकार्ड पहले ही टूट जाएगा।
देवप्रयाग
टिहरी की देवप्रयाग विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय है। बीजेपी ने यहां से विनोद कंडारी को मैदान में उतारा है, जो कि सीटिंग विधायक हैं। उन्हें चुनौती देने के लिए कांग्रेस की तरफ से मंत्री प्रसाद नैथानी चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन यहां मजबूत पकड़ यूकेडी से दिवाकर भट्ट की दिखाई दे रही है। जानकारी के मुताबिक विधायक विनोद कंडारी को इस बार यूकेडी प्रत्याशी दिवाकर भट्ट से सीधी टक्कर मिलेगी। दरअसल, विनोद कंडारी को लेकर स्थानिय लोगों में नाराजगी है। लोग पानी और मूलभूत सुविधाओं के विकसित न होने से नाराज हैं तो कुछ का कहना है कि विधायक जी ने लोगों से सामाजिक स्तर पर जुड़ने की कोशिश नहीं की। सिर्फ अपने चहेतों को फायदा पहुंचाया। इस सीट का इतिहास देखें तो 2002 के चुनाव में यहां कांग्रेस प्रत्याशी मंत्री प्रसाद नैथानी जीते थे। साल 2007 में यहां से यूकेडी के दिवाकर भट्ट ने बंपर वोटों से जीत हासिल की। साल 2012 में मंत्री प्रसाद नैथानी निर्दलीय लड़े और 12294 वोटों के साथ जीत गए। साल 2017 के चुनाव में यहां से बीजेपी के विनोद कंडारी ने 13824 वोटों के साथ जीत दर्ज कराई। इस बार भी यहां तीनों प्रत्याशी मैदान में हैं, जिससे मुकाबला रोचक होने जा रहा है।
श्रीनगर
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की कईं हॉट सीटों में आखिरी हॉट सीट पौड़ी गढ़वाल जिले की श्रीनगर विधानसभा सीट है। वर्तमान में यहां से कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत विधायक हैं। भाजपा से इस बार भी धन सिंह रावत को टिकट दिया गया है. धन सिंह रावत भाजपा के बड़े नेताओं में शुमार हैं. वहीं, श्रीनगर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल इस बार धन सिंह रावत को चुनौती देने मैदान में उतरे हैं। प्रदेश में हुए विगत चार विधान सभा चुनावों में यहां बारी-बारी से भाजपा व कांग्रेस की झोली में जीत की खुशियां आई हैं। बता दें, कि सीट पर इस समय 07 प्रत्याशी मैदान में है। यहां भी स्थिती त्रिकोणीय है क्योंकि यूकेड़ी से मोहन काला इस समय मैदान में है। स्थानीय निवासी एवं व्यवसायी मोहन काला का प्रभाव क्षेत्र में काफी है। कुलमिलाकर तीनों प्रत्याशी काफी मजबूत माने जा रहे हैं।